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असीम की ओर विस्तार का संदेश प्रसारित करते 77 वें निरंकारी संत समागम का सफल समापन

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*असीम की ओर विस्तार का संदेश प्रसारित करते 77 वें निरंकारी संत समागम का सफल समापन*
                                                                                                *असीम से जुड़कर जीवन के हर पहलू का विस्तार करें –                                                          सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज*


*मानव से प्रेम ही ईश्वर प्रेम है  – सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज*

एटा , 24 नवंबर 2024- 77वें वार्षिक निरंकारी संत समागम को सफलता पूर्वक समापन करके लौटे निरंकारी भक्तों ने अविनाशी सहाय आर्य विद्यालय में निरंकारी सत्संग का आयोजन किया। जिसमे सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के अमृतमयी प्रवचनों के माध्यम से दिव्य संदेश को देते हुए कहा कि परमात्मा असीम है और इससे जुड़ने वाला हर पहलू असीम होता है। ब्रह्मज्ञान द्वारा परमात्मा को जानने के उपरांत जब हम इससे जुड़ते हैं तो जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मक विस्तार होता चला जाता है। 

निरंकारी संत समागम में सतगुरु माता जी ने भक्ति में भोले भाव की महत्ता बताते हुए कहा कि परमात्मा भोले भाव से रिझता है। चेतन और सजग रहते हुए भक्त भ्रम और भ्रांतियों से प्रभावित नहीं होते। उन्होंने श्रद्धालुओं से समागम में ग्रहण की गई शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाने का आह्वान किया।

भक्ति की परिभाषा को एक नया दृष्टिकोण देते हुए सतगुरु माता जी ने कहा कि यदि जीवन के हर क्षण को भक्ति में बदल दिया जाए, तो अलग से पूजा का समय निकालने की आवश्यकता ही नहीं रहती। यही विचारधारा जब व्यापक रूप ले लेती है तो सबके प्रति निस्वार्थ सेवा और प्रेम की भावना को जाग्रत करती है। आपने संतों के संग और ध्यान (सुमिरण) को आत्मा की गहराई से जोड़ने का सरल माध्यम बताया।

सतगुरु माता जी ने उदाहरण स्वरूप समुद्र की गहराई और शांति को सहनशीलता और विनम्रता का सुंदर प्रतीक बताया। जिस प्रकार समुद्र अपने अंदर सब कुछ समेटे हुए होता है फिर भी शांत अवस्था में रहता है ठीक उसी प्रकार मनुष्य को भी अपने भीतर सहिष्णुता और विशालता विकसित करनी चाहिए।
मीडिया सहायक अमित कुमार ने जानकारी देते हुए बताया कि समाज कल्याण विभाग की ओर से संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल समालखा में निरंकारी सामूहिक सादा शादियों का एक ऐसा अनुपम दृश्य प्रदर्शित हुआ जिसमें भारतवर्ष के विभिन्न राज्यों एवं  दूर देशों जिनमें आस्ट्रेलिया, यू.एस.ए. सहित लगभग 96 नव युगल सत्गुरु माता जी एवं आदरणीय निरंकारी राजपिता जी की पावन हजूरी में परिणय सूत्र में बंधे तथा अपने मंगलमयी जीवन की कामना हेतु पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। इस अवसर पर निरंकारी मिशन के अधिकारीगण, वर-वधू के माता-पिता, सगे-सम्बन्धी एवं मिशन के अनेक श्रद्धालु भक्तों की उपस्थिति रहीं। सभी ने इस दिव्य नजारे का भरपूर आनंद प्राप्त किया।

सामूहिक विवाह कार्यक्रम का आरम्भ पारम्परिक जयमाला एवं निरंकारी शादी के विशेष चिन्ह सांझा-हार द्वारा हुआ। उसके उपरांत भक्तिमय संगीत के साथ मुख्य आकर्षण के रूप में निरंकारी लावों का हिंदी भाषा में प्रथम बार गायन हुआ जिसकी प्रत्येक पंक्ति में नव विवाहित युगलों के सुखमयी गृहस्थ जीवन हेतु अनेक कल्याणकारी शिक्षाएं प्रदत्त थी।

उल्लेखनीय है कि प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला यह पावन आयोजन अपनी सादगी बिखेरता हुआ जाति, धर्म, वर्ण, भाषा जैसी संकीर्ण विभिन्नताओं से ऊपर उठकर एकत्व का सुदंर स्वरूप प्रदर्शित करता है।

नव विवाहित जोड़ों को आशीर्वाद प्रदान करते हुए सतगुरु माता जी ने फरमाया कि गृहस्थ जीवन के पवित्र बंधन में नर और नारी दोनों का ही समान स्थान होता है जिसमें कोई बड़ा अथवा छोटा नहीं अपितु दोनों की महत्ता बराबर की होती है। यह एक अच्छी सांझेदारी का उदाहरण है।

अंत में सतगुरु माता जी ने सभी नव विवाहित जोड़ों के जीवन हेतु शुभ कामना करते हुए उन्हें आनंदमयी जीवन का आशीर्वाद दिया।

ROOPENDRA KUMAR
Author: ROOPENDRA KUMAR

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