बाल कवियत्री आरोही तिवारी ने अतरौली के ठाकुर जी मंदिर में चल रहे श्री राम कथा में शिव प्रसंग सुना सभी को किया मंत्रमुग्ध
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अतरौली ठाकुर जी मंदिर में चल रही श्रीराम कथा मै
आरोही तिवारी बाल कवियत्री ने शिव प्रसंग सुना कर गुरुजी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया
गुरुजी ने व्यासपीठ से आशीर्वाद वह आरोही को सम्मान दिया
मंदिर के अध्यक्ष ने स्मृति चिन्ह देकर
गुड़िया आरोही तिवारी को सम्मानित किया
नाम आरोही तिवारी
माता पार्वती ने प्रश्न किया भगवान शिव से
क्या संसार में केवल सुख का होना संभव नहीं है
तो भगवान शिव ने उत्तर दिया
प्रत्येक आत्मा का लक्ष्य केवल सुख की प्राप्ति ही तो है
परमानंद की प्राप्ति
किंतु हम सुख नहीं
सुख को प्राप्त वाली वस्तुओं को एकत्रित करना जीवन का उद्देश्य मान लेते हैं
यह समस्त संसार माया है सब कुछ नश्वर है
जिन वस्तुओं को हम सुख का स्रोत समझकर एकत्रित कर रहे हैं
वह सदैव नहीं रहेंगी
जो व्यक्ति सत्य को जानते हुए भी लोभ का परित्याग नहीं करते
वह सदैव इन्हें खोने के भय में जीते हैं
वह जो व्यक्ति सत्य को जानते ही नहीं
वह अहंकार में जीते हैं
जहां भय और अहंकार उपस्थित हो
वहां सुख कैसे रह सकता है
किसी को यह दुख है कि उसके पास कुछ भी नहीं है
और जिसके पास सब कुछ है
उसे दुख है कि पाने को कुछ शेष नहीं है
सुख को हम स्वयं अपने दृष्टिकोण से परिभाषित कर देते हैं
जबकि वास्तविकता इससे पूर्ण है
आवश्यकता है अनासक्त रहने की
माता कहती हैं
किंतु प्रभु आसक्ति स्वाभाविक नहीं है
तो प्रभु कहते हैं
दुख का मूल कारण भी तो यही है
आसक्ति हमारे मन की शांति को छीन लेती है
उसे भंग कर देती हैं
हमारी बुद्धि को स्थिर नहीं रहने देती
उसे चंचल बना देती है
आसक्ति से प्रमाद की उत्पत्ति होती है
प्रमाद मद होता है
और मद अहंकार का स्रोत है
और अहंकार पूर्णतह अशुभता में परिवर्तित हो जाता है
अर्थात आसक्ति अशुभता की जननी है
इसलिए अनावश्यक
माता पार्वती ने पूछा
तो स्वामी
आसक्ति को अनासक्ति में कैसे परिवर्तित किया जा सकता है
और हम आसक्ति से कैसे उभर सकते हैं
तो भगवान शिव ने वताया
आसक्ति से मुक्त होना ही अनासक्ति है
आसक्ति हीन होने के लिए अपने
और पराए का भेद मिटाना अनिवार्य है
और यह तभी संभव होगा
जब हम सुख की खोज बाहर नहीं
अपने भीतर करें
जब हम यथार्थ को पहचाने
उसे स्वीकार करें
अपने सुख को सांसारिक तत्वों से परिभाषित नही करते
जब तक हम ऐसा करते रहेंगे हम बंधते जाएंगे
जब हम स्वयं अपने भीतर झांकना आरंभ करेंगे
हमारी मुक्ति का मार्ग स्वत ही प्रशस्त होता जाएगा
आपने हमको दुख का कारण तो बता दिया
किंतु हम भय के बारे में भी जानना चाहते हैं
तो भगवान शिव ने बताया
भय
भय का स्रोत है ईच्छा
पाने की इच्छा होगी तो उसे खोने का भय भी होगा
यदि जीवित रहने की इच्छा है
तो मृत्यु का भय है भी अवश्य होगा
किंतु केवल मनुष्य ही नहीं
देवता गंधर्व
सभी इस भय से ग्रसित हैं
क्योंकि इच्छाऔ से मुक्त कोई भी नहीं
अनिष्ट ईर्ष्या निंदा षड्यंत्र भय से ही उत्पन्न होते हैं
और प्रत्येक पाप का प्रायश्चित
केवल दुख और कष्ट उठाने से ही संभव होता है
इसलिए भय भी अंत में
दुख का कारण बन जाता है
बोलो ओम नमः शिवाय